5. बिहार : कृषि एवं वन संसाधन ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )


1. “कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-बिहार में 90% लोग गाँवों में रहते हैं और यहाँ की 80% आबादी कषि पर निर्भर है। यह एक कृषि प्रधान राज्य है। झारखण्ड के अलग हो जाने के बाद बिहार के लोगों के लिए जीविका का मुख्य आधार कृषि ही है अर्थात् कृषि का महत्त्व अधिक बढ़ गया है। 1990-91 ई० में यहाँ 48.88% भूमि पर कृषि की जाती थी। 2005-06 ई० में बढ़कर 59.37% हो गया। यहाँ भदई और अगहनी फसल धान, ज्वार, बाजरा, मकई, अरहर और गन्ना उपजाए जाते हैं। रबी फसल में गेहूँ, जौ, दलहन एवं तिलहन उपजाये जाते हैं और गरमा फसल, गरमा धान तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ उगाई जाती हैं। व्यावसायिक फसलों में गन्ना, जूट और तम्बाक प्रमुख हैं। सब्जियों के अंतर्गत आलू, प्याज, भिंडी, परोर, लौकी, पालक, लाल साग, लूबिया, फूलगोभी, पटल, पत्ता गोभी आदि उपजाये जाते हैं। मौसमी फलों में आम, अमरूद, केला, लीची, पपीता, सिंघाड़ा, मखाना आदि प्रमुख है। मसालों में मिर्च, हल्दी, अदरख, धनिया, सौंफ, लहसून आदि की खेती की जाती है। बिहार में विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, व्यावसायिक फर ल, मसाले एवं फलों का उत्पादन किया जाता है जिसके फलस्वरूप बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ कषि है।


2. बिहार की कृषि की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर-बिहार में कृषि संबंधी निम्नलिखित समस्याएँ देखने को मिलती है –

(i) मिट्टी कटाव एवं गुणवत्ता में हास- भारी वर्षा और बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है। खेतों में वर्षा से लगातार रासायनिक पदार्थों के उपयोग से मिट्टी का ह्रास हो रहा है।

(ii) घटिया बीजों का उपयोग- उच्च कोटि के बीज का उपयोग नहीं होने से प्रति एकड़ उपज अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है।

(iii) खेतों का छोटा आकार-  बिहार राज्य में खेतों का आकार छोटा है जिसके कारण वैज्ञानिक पद्धति से खेती संभव नहीं हो पाती है।
(iv) किसानों में रूढ़िवादिता की भावना-  यहाँ के किसान परिश्रम पर कम, भाग्य और रूढ़िवादिता पर अधिक भरोसा करते हैं।

(v) सिंचाई की समस्या-  यहाँ की कषि मानसून पर निर्भर है। बाढ़ और सुखाड़ यहाँ की नियति है। यहाँ खेती की गई भूमि के 46% भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था हो पायी है। शेष भमि पर सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त और भी कई समस्याएँ हैं। जैसे पूँजी का अभाव, पशुओं की दयनीय दशा, जनसंख्या का बोझ, आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएँ आदि।


3. बिहार में कृषि-कार्य के लिए सिंचाई की व्यवस्था क्यों आवश्यक है।

उत्तर -बिहार में कृषि कार्य के लिए सिंचाई की व्यवस्था इसलिए आवश्यक है कि-

(i) यहाँ मानसूनी जलवायु पायी जाती है जिसमें वर्षा का होना समय पर और सही मात्रा में निश्चित नहीं है।
(ii) वर्षा अवधि चार महीनों का ही है बाकी समय में सिंचाई ही सहारा है।
(iii)वर्षा का वितरण परे राज्य में असमान है अतः कम वर्षा वाले क्षेत्रो में सिंचाई के बिना खेती नहीं की जा सकती है।
(iv) रबी की फसल जाडे की ऋत में उगाई जाती है। इस ऋतु में वो नहीं होती है। सिंचाई की आवश्यकता है।
(v) गन्ना, आलू, प्याज जैसी फसलों के लिए जिनमें कई बार पानी देना पड़ता है, सिंचाई की आवश्यकता होती है।

गंगा के दक्षिण में सोन, पुनपुन, फल्गु, चानन प्रमुख नदियाँ हैं। यह सब बरसाती नदियाँ हैं जो वर्षा ऋतु में ही प्रवाहित रहती है और उत्तर की ओर बहते हुए गंगा से मिल जाती हैं। ये नदियाँ ग्रीष्म काल में सूख जाती है।


4. बिहार के कृषि-आधारित किसी एक उद्योग (चीनी उद्योग) के विकास एवं वितरण पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-बिहार में कृषि पर आधारित उद्योग में चीनी उद्योग का स्थान प्रमुख है। बीसवीं सदी के मध्य तक भारत में चीनी उद्योग के क्षेत्र में बिहार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। 1960 ई० के बाद उस उद्योग में ह्रास होने लगा और अब यह सातवें स्थान पर है। भारत की पहली चीनी मिल डच कंपनी द्वारा 1840 ई० में बेतिया में स्थापित किया गया था। पूर्व में यहाँ चीनी की मिलों की संख्या 29 थी परंतु 2006 07 ई० में घटकर केवल 09 रह गई है। वर्तमान समय में चीनी का कुल उत्पाद 4.52 मीट्रिक टन है। बिहार में चीनी की अधिकतर मिलें उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में है। पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सिवान, गोपालगंज तथा सारण जिला में चीनी की मिलें केंद्रित है क्योंकि यह क्षेत्र गन्ना उत्पादन के लिए अत्यंत अनुकूल है। दरभंगा तथा मुजफ्फरपुर जिले में भी कुछ मिलें हैं। इसके अतिरिक्त राज्य के दक्षिणी भाग में विक्रमगंज, बिहटा और गुरारू में भी चीनी मिलें हैं।
राज्य में चीनी उत्पादन को बढ़ाने के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में विशेष बल दिया गया है। बंद चीनी मिलों को पुनः चालू करने के लिए कार्यक्रम बनाया गया है। राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि ग्यारह बंद चीनी मिलों का परिचालन की जिम्मेवारी रिलायन्स, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दे दी जायेगी।


5. बिहार की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाओं के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखें।

उत्तर- (i) सोन नदी घाटी परियोजना- यह परियोजना बिहार की सबसे पुरानी तथा पहली नदी घाटी परियोजना है। इस परियोजना का विकास अंग्रेज सरकार द्वारा 1874 ई० में हआ। इसमें डेहरी के निकट से पूरब एवं पश्चिम की ओर नहरें निकाली गई हैं। इसकी कल लम्बाई 130 कि०मी० है। इस नहर से पटना एवं गया जिले में कई शाखाएँ तथा उपशाखाएँ निकाली गई हैं जिससे औरंगाबाद, भोजपुर, बक्सर, रोहतास जिले की भमि सिंचित की जाती है। वर्तमान में इससे कुल 4.5 लाख हक्टयर खेतों की सिंचाई की जाती है। सूखा प्रभावित क्षेत्र की सिंचाई की सविधा प्राप्त होने से बिहार का दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र का प्रति हेक्टेयर उत्पादन का व्यय बढ़ गया है और चावल की अधिक खेती होने लगी है। इस कारण से इस क्षेत्र को चावल का कटोरा कहते हैं।

(ii) गंडक नदी घाटी परियोजना- इस परियोजना का निर्माण गंडक नदी पर हुआ तथा इसका मुख्यालय वाल्मीकिनगर है। इस परियोजना द्वारा गंडक नदी क्षेत्र की विशाल भूमि पर सिंचाई तथा विद्यत उत्पादन होता है। इसमें मुख्यतः पूर्वी एवं पश्चिमी चम्पारण, भैंसालोटन (वाल्मीकिनगर), वीरपर आदि के क्षेत्र आते हैं। परियोजना से पूर्व यह क्षेत्र गंडक की व्यापक विनाशलीला से संत्रस्त था। परियोजना के निर्माण के बाद इस क्षेत्र की सर्वतोमुखी विकास हुआ है।

(iii) कोसी नदी घाटी परियोजना- इस परियोजना का प्रारंभ 1955 में बिहार के पूर्वांचल क्षेत्र में किया गया। कोसी नदी द्वारा इस क्षेत्र में भयानक बाढ़ एवं तबाही आती थी। कोसी नदी निरन्तर अपनी धारा बदलती रहती थी। अतः इसे ‘बिहार का शोक’ कहते थे। परियोजना के निर्माण के पश्चात कोसी नदी वरदान स्वरूप अपनी निर्मल धारा से कोशी क्षेत्र की समृद्धि में योगदान कर रही है। इसके अन्तर्गत पड़ने वाले क्षेत्र मुख्यतः पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, अररिया, फारबिसगंज आदि अब निरंतर तीव्र विकास की ओर अग्रसर हैं। बिहार सरकार ने कोसी में नहरों तथा विद्युत उत्पादन की दिशा में व्यापक कार्ययोजना तैयार की है।


6. बिहार के प्रमुख सड़क मार्गों के विस्तार एवं विकास पर प्रकाश डालिए।

उत्तर—बिहार में सड़कों का विकास प्राचीनकाल से ही सम्राटों तथा बादशाहों द्वारा किया जाता रहा है। आजादी के समय बिहार की कुल सड़कों की कुल लंबाई 81,680 किमी० थी। वर्तमान सडक मार्ग को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है –

(i) राष्ट्रीय उच्चपथ

(ii) राज्य उच्चपथ

(iii) मुख्य जिला सड़क

(iv) अन्य जिला सड़कें और

(v) ग्रामीण सड़कें।

राष्ट्रीय उच्च मार्ग बिहार के अन्य राज्यों एवं क्षेत्रों से जोड़ता है। सबसे प्रमुख राष्ट्रीय उच्च मार्ग सं० 2 हैं जिसे ग्राण्ड ट्रंक रोड कहते हैं। इसकी कुल लंबाई 204 किमी० है। यह बिहार में शेरघाटी सासाराम-मोहनियाँ होकर गुजरती है। बिहार से राष्ट्रीय उच्च पथ की कुल लंबाई 3,734 किमी० है। इस समय यह सड़क चार लेन हो गया है। दूसरी राष्ट्रीय पथ सं० 28 है जो गोपालगंज, पिरापैती, मुजफ्फरपुर, बरौनी होकर गुजरती है। बिहार में यह 266.30 किमी० लंबी है। बिहार में सबसे लंबी उच्च पथ 398 किमी० लंबी उच्च पथ सं० 31 है यह रजौली घाटी-बख्तियारपुर, बरौनी सड़क है। बिहार में 3849.22 किमी० राज्य उच्च पथ का विस्तार है। इन सड़कों की देख-रेख बिहार सरकार करती है और यह मुख्य रूप से जिला मुख्यालयों को जोड़ता है। मुख्य जिला सड़कों की लंबाई 7,01,728 किमी० है। राज्य में सबसे अधिक विस्तार ग्रामीण सड़कों का है। इसका कुल लंबाई 63,261.63 किमी० है। जिसका रख-रखाव ग्राम पंचायत या प्रखण्ड विकास कार्यालय द्वारा होता है।


7. बिहार की नदियों का वर्णन करें।

उत्तर-बिहार की नदियों को जलापूर्ति के आधार पर दो वर्गों में रखा जाता है ।

(i) गंगा के उत्तरी मैदान की नदियाँ – इनमें गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, लखनदेई, कमला, कोसी और महानंदा मुख्य है। इन नदियों की ढाल उत्तरी मैदान की ढाल के अनुसार है। ये सभी नदियाँ हिमालय पहाड़ से निकलती हैं। अतः इनमें वर्ष भर जल बहा करता है। ये बरसात में उफनने लगती है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ लाती है। ये नदियाँ अपना मार्ग भी बदलती रहती है। जिसके कारण अनेक झाड़न झीलों का निर्माण हुआ है। इस क्षेत्र में दलदल और चौर भूमि मिलती है। कोसी नदी अपने मार्ग-परिवर्तन और बाढ़ लाने के लिए बदनाम है। ये बिहार का शोक कहलाती थी। किंतु अब इसके दोनों किनारे पर बाँध बनाकर इसे नियंत्रित किया गया है। फिर भी 2008 में कुसहा बाँध तोड़कर इस नदी ने बड़ी तबाही मचायी है।

(ii) गंगा के दक्षिण मैदान की नदियाँ – इस क्षेत्र में मुख्यतः सोन, पनपन. फल्ग, चानन और चीर नदियाँ प्रवाहित हैं। ये सब नदियाँ दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा से मिलती हैं। इन नदियों में केवल वर्षा का जल ही प्रवाहित होता है। इसलिए ग्रीष्मकाल में ये नदियाँ सूख जाती है। बरसात में ये नदियाँ भी उमड पडती है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ लाती है। कई भाग जल से भर कर ताल क्षेत्र बन जाती है, जैसे मोकामा या बड़हिया का ताल। पटना से लखीसराय तक का क्षेत्र जल्ला कहलाता है।


8. बिहार की जनसंख्या के घनत्व पर विस्तार से चर्चा करें।

उत्तर-बिहार राज्य में प्रतिवर्ग किमी० जनसंख्या का घनत्व 2011 ई० की जनगणना के अनुसार 1,106 व्यक्ति है। बिहार के विभिन्न भागों में जनसंख्या के घनत्व में अन्तर पाया जाता है। इसे निम्न प्रकार से देखा जा सकता है –

(i) अत्यधिक घनत्व वाले जिला- इसके अंतर्गत पटना, सीतामढ़ी, वैशाली, दरभंगा, सारण, पू० चम्पारण, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, बेगूसराय, नालन्दा, गोपालगंज, जहानाबाद, शिवहर जिले आते हैं। जहाँ जनसंख्या का घनत्व 1200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० से अधिक पाया जाता है।

(ii) उच्च घनत्व वाले जिले- इसके अंतर्गत वे जिले आते हैं जिसका घनत्व 1000-1200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० है। इनमें पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, भोजपुर, मधेपुरा, सहरसा, बक्सर, खगड़िया, अरवल जिले आते हैं। मध्यम धनत्व वाले जिले-इसके अंतर्गत 800-1000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० जनसंख्या का घनत्व पाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से गया, अररिया, सुपौल, नवादा, किशनगंज, मुंगेर, शेखपुरा जिले आते हैं।

(iv) कम घनत्व के जिले- यहाँ 600-800 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० जनसंख्या का घनत्व पाया जाता है जिसमें पं० चम्पारण, रोहतास, औरंगाबाद, लखीसराय जिले आते हैं।

(v)अत्यंत कम घनत्व वाले जिले- जहाँ 600 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० से भी कम जनसंख्या का घनत्व पाया जाता है। इसमें बाँका, जमुई एवं कैमूर जिले आते हैं।


9. बिहार के जल मार्ग पर अपना विचार प्रस्तुत करें।

उत्तर-बिहार एक भू-आवेशित राज्य होने के कारण इसका सम्पर्क समुद्री मार्ग से नहीं है। यहाँ जलमार्ग के लिए नदियों का उपयोग किया गया है। गंगा, घाघरा, कोसी, गंडक और सोन नदियाँ मख्य रूप से जल परिवहन के लिए उपयोग में लायी जाती है। घाघरा नदी से खाद्यान्न, गण्डक से लकड़ी फल, सब्जी, सान से बालू और पुनपुन नदी से बाँस ढोया जाता है। वर्तमान समय में जल परिवहन के लिए स्टीमर बड़ी-बड़ी नावें कार्यरत हैं।
           गंगा नदी में हल्दिया इलाहाबाद राष्ट्रीय जल मार्ग का विकास किया गया है। हाल में ही महेन्द्र घाट के पास एक राष्ट्रीय पोत संस्थान की स्थापना की गई है। बिहार में नदियों से संबंधित सिंचाई योजना के अंतर्गत नहरों के निर्माण में जल मार्ग के विकास की संभावनाएँ हैं। नहरों से परिवहन के लिए कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है।


10. बिहार के औद्योगिक विकास की संभावना पर अपना विचार प्रस्तुत करें।

उत्तर-बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ खनिज संपदा की कमी है। इसलिए यहाँ खनिज पर आधारित उद्योग का विकास बहुत अधिक नहीं किया जा सकता है। हाँ, कृषि से उत्पादित कच्चा माल और शक्ति के साधनों की कमी नहीं है। बिहार में गन्ना और जूट आदि का प्रमुख क्षेत्र है। शक्ति के साधनों के रूप में नदी घाटियाँ जल शक्ति प्रदान करने में सक्षम हैं। घनी जनसंख्या मिलने के कारण श्रमिकों का अभाव नहीं है। इसलिए बिहार में कृषि उत्पाद पर आधारित उद्योग को बढावा दिया जा सकता है। इस प्रकार हल्के उद्योगों में चीनी, सिगरेट, अभ्रक की छिलाई और वन उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
          घरेलू उद्योग के रूप में चावल तैयार करने, दाल तैयार करने, तेल निकालने, रस्सी बनाने, बीड़ी बनाने, मधुमक्खी पालने, लाह तैयार करने और रेशम के कीडे पालने जैसे उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
      इसके अतिरिक्त प्लास्टिक उद्योग, पेट्रो रसायन पदार्थ, गन्ने की खोई से कागज बनाने का उद्योग, धान की भूसी से बिजली उत्पादन करने की बड़ी सम्भावनाएँ हैं। सती वस्त्र उद्योग को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। सरकार को इस दिशा में विचार करते हुए सहयोग करना चाहिए। जिससे रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे।


11. बिहार में पाए जाने वाले खनिजों को वर्गीकृत कर किसी एक वर्ग के खनिज का वितरण एवं उपयोगिता को लिखिए।

उत्तर-बिहार में पाए जाने वाले खनिज को निम्न रूप में वर्गीकत किया जा सकता है –

(i) धात्विक खनिज-बॉक्साइट, सोना, मैंगनेटाइट
(ii) अधात्विक खनिज-चूना-पत्थर, अभ्रक, डोलोमाइट, पाइराइट
(ii) परमाणु खनिज-ग्रेफाइट
(iv) ईंधन खनिज-पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।
धात्विक खनिज – के वितरण एवं उपयोगिता का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जाता है। बॉक्साइट – वितरण गया, जमुई, बाँका आदि जिलों में।

उपयोग – एलुमीनियम निकालकर वायुयान, बरतन, तार बनाने में किया जाता है।
मैग्नेटाइट-वितरण — बिहार के पहाड़ी क्षेत्र में।
उपयोगिता – लोहा निकालकर विभिन्न उपयोगी सामान बनाने में सोना-वितरण-बिहार की नदियों के रेतकण में ।
उपयोग – आभूषण निर्माण में प्रयोग होता है। बिहार में उत्पादन प्रारंभ नहीं हो सका है।


12. बिहार की किन्हीं पाँच प्रमख फसलों का नाम लिखें। उनमें से किसी एक के उत्पादन की भौगोलिक दशाओं एवं उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करें।

उत्तर-बिहार राज्य में जिन खाद्यान्न का उत्पादन कृषि द्वारा होता है उनमें प्रमख हैं चावल, गेहूँ, जौ, मकई, दलहन, तेलहन, सब्जी और विभिन्न प्रकार के फल। इनमें धान के उत्पादन के लिए निम्न भौगोलिक दशाएँ उपयुक्त होता है-

(i) मानसूनी जलवायु
(ii) उच्च तापमान (20°C से 30°C तक)
(iii) ग्रीष्मकालीन अधिक वर्षा (वार्षिक वर्षा 200 cm से अधिक) (कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था)
(iv) समतल भूमि (ताकि खेतों में जल जमा रहे)
(v) जलोढ़ मिट्टी
(vi) पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिक
बिहार में धान की खेती मुख्यतः उत्तर के मैदानी भाग में होती है जहाँ वर्षा से भरपूर जल की प्राप्ति होती हैं। बिहार में उत्तरी चम्पारण, रोहतास, औरंगाबाद, बक्सर और भोजपुर प्रमुख धान उत्पादक जिले हैं जहाँ सिंचाई और जलोढ़ मिट्टी की सुविधा प्राप्त है और मानसूनी जलवायु क्षेत्र में पड़ता है। फसलों की उपज बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाई जा रही है। जिससे उत्पादन भी बढा है। वर्ष 2006-07 में बिहार में 50 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था।


13. बिहार में वस्त्र उद्योग पर विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर- वस्त्र उद्योग बिहार का एक प्राचीन उद्योग हैं। इस उद्योग में एक विशेष समुदाय की भागीदारी रही है। भागलपुर के तसर के कपड़े, लूंगी एवं चादर देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। औरंगाबाद जिला के ओबरा तथा दाउदनगर के बने कालीन की माँग सारे भारत में है। यहाँ सूती, रेशमी और ऊन वस्त्र तैयार किया जाता है। कच्चे माल के अभाव के कारण बिहार में सूती वस्त्र उद्योग का विकास अधिक नहीं हुआ है। लेकिन सस्ते मजदूर एवं विस्तृत बाजार के कारण डुमराँव, गया, मोकामा, मुंगेर, फुलवारीशरीफ, ओरमाझी एवं भागलपुर में सूती वस्त्र बनाए जाते हैं। यहाँ छोटी-छोटी मिलें स्थापित हैं जो सूत कानपुर और अहमदाबाद से मँगाते हैं।
               भागलपुर रेशमी वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। बिहार में एक हस्तकरघा एवं रेशमी वस्त्र निदेशालय की स्थापना हुई है। इसके द्वारा क्षेत्रीय स्तर पर भागलपुर, मुजफ्फरपुर, गया तथा दरभंगा में रेशमी वस्त्र उद्योग का विकास हआ है। इस निदेशालय के अधीन भभुआ में बनारसी साड़ी, नालंदा तथा नवादा में रेशमी वस्त्र उत्पादन को विकसित किया गया है।
              बिहार में ऊनी वस्त्र उद्योग का विकास नहीं के बराबर है। सिर्फ स्थानीय भेड़ों के ऊन से कंबल आदि बनाए जाते हैं। औरंगाबाद के ओबरा एवं दाऊदनगर क्षेत्र में कम्बल तथा कालीन तैयार किये जाते हैं।


14. ऊर्जा उत्पादन में बिहार की स्थिति पर प्रकाश डालें।

उत्तर-उद्योगों को चलाने, विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने में ऊर्जा साधन की आवश्यकता होती है। बिहार के पास 592.1 मेगावाट ताप विद्युत, 47.1 मेगावाट जलविद्युत तथा 5 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में उत्पादन है। परंतु तापविद्युत केंद्र की स्थिति अच्छी नहीं है। मुजफ्फरपुर का ताप विद्युत केंद्र बंद पड़ा है। बरौनी से भी 30 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और लागत भी अधिक पड़ती है अर्थात् उत्पादन खर्च महँगा है।
           वर्तमान में बिहार को 900 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है जो कभी-कभी 1.000 मेगावाट तक पहुँच जाती है। केंद्रीय क्षेत्रों से बिजली खरीद कर बिहार अपना काम चलाता है। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन से 959 मेगावाट, चुखा पनबिजली से 80 मेगावाट तथा माँग बढ़ने पर रंगीत बिजली से 21 मेगावाट बिजली खरीदी जाती है। इस प्रकार राज्य कोष का बहुत धन इसी पर खर्च हो जाता है। वह भी इस स्थिति में जब बिहार में प्रतिव्यक्ति बिजली की खपत बहुत कम मात्र 60 किलोवाट प्रतिवर्ष है। जबकि राष्ट्रीय औसत खपत 354.75 किलोवाट प्रतिवर्ष है।


15. बिहार राज्य की स्थिति एवं विस्तार को समझावें।

उत्तर-बिहार एक भू-आवेशित प्रांत है, जिसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखंड, पूर्व में पश्चिम बंगाल एवं पश्चिम में उत्तरप्रदेश है। यह गंगा के मध्यवर्ती मैदान में 24° 20′ उत्तरी अक्षांश से 27° 31′ 15″ उत्तरी भांश तक एवं 83° 19′ 50″ पूर्वी देशांतर से 88° 17′ 40″ पूर्वी देशांतर तक स्थित है।
             यह लगभग आयताकार है, जिसकी पूर्व से पश्चिम लंबाई 483 कि० मी० और जनर से दक्षिण चौड़ाई 345 किलोमीटर है। इसका क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर जो भारत का 2.86 प्रतिशत है। यह देश का 12वाँ सबसे बडे क्षेत्रफल वाला राज्य है।


16. बिहार के गैर-परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों का वर्णन कीजिए और एक का विस्तार से चर्चा कीजिए।

उत्तर- बिहार में गैर-परंपरागत एवं नवीकरणीय ऊर्जा का भारी संभावनाएँ हैं। बहत वृहत जल ऊर्जा, बायोगैस ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है। बिहार में नवीकरणीय ऊर्जा विकास को राज्य में ऊर्जा के गैर-पारंपारिक स्रोत के जरिए दूरस्थ गाँवों के विद्युतीकरण एवं नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों के विकास के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है। यहाँ 92 सम्भावित स्थलों की पहचान की गई है जहाँ लघु जल-विद्यत परियोजनाओं का विकास किया जाएगा और जिसके कुल उत्पादन क्षमता 46% मेगावाट होगा।
           बिहार में यह उत्पादन योजना समेत बायोमास आधारित विद्युत परियोजनाओं की स्थापना के द्वारा 200 मेगावाट विद्युत उत्पादन की शक्ति संभव है। पवन ऊर्जा आधारित विद्युत परियोजनाओं की स्थापना के बिहार सरकार तत्पर है। संभावित स्थलों की पहचान की गयी है। राज्य की नोडल एजेंसी चेन्नई की सहयोग से पवन संसाधन आकलन कार्यक्रम हाथ में लेने के प्रयास में हैं। बायोगैस गाँव में भोजन बनाने संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। बिहार में अब तक इस क्षेत्र में 125 लाख संयंत्र स्थापित किए हैं।


17. बिहार में कौन-कौन फसलें उगाई जाती हैं? किसी एक फसल के मुख्य. उत्पादनों की व्याख्या करें।

उत्तर- बिहार में मौसम के अनुसार चार प्रकार की फसलें उगायी जाती है-
(i) भदई,
(ii) अगहनी,
(iii) रबी एवं
(iv) गरमा।
भदई फसल – भदई फसल की खेती मई-जून में शुरू की जाती है और अगस्त-सितंबर में फसल की कटाई कर ली जाती है। इस फसल में मुख्यतः भदई धान, ज्वार, बाजरा, मकई के अतिरिक्त जूट और सब्जी की खेती की जाती है।


18. बिहार में वन्यजीवों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा करे।

उत्तर-बिहार में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाना जरूरी है-

(i) वन बिनाश पर जल्दी विराम लगाना चाहिए, जिससे वन्य जीवों का आश्रय स्थल सुरक्षित रूप में बना रहे।
(ii) आखेट पर पाबंदी लंगाया जाए।
(iii) वन्य प्राणियों के प्रजनन बढ़ाने के प्रयास किये जाएँ ।
(iv) रासायनिक दवाओं के प्रभाव से भी वन्यजीवों की प्रजनन क्षमता घट रही है। ऐसे दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
(v) इस संदर्भ में सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है। वन्यजीवों के संरक्षण में कई स्वयंसेवी संस्थाएँ कार्य कर रही है। इनमें प्रयास, तरूमित्र, प्रत्युष, मंदार, नेचर क्लब प्रमुख हैं। बेगूसराय जिला का कॉवर झील और दरभंगा जिला का कुशेश्वर स्थान वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है जहाँ पहले पक्षियों का शिकार किया जाता था, लेकिन अब पूर्णतः शिकार करना वर्जित हो गया है।


19. बिहार में तापीय विद्युत-केन्द्रों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में बिहार में कई तापीय विद्युत केन्द्र हैं। इनमें कहलगाँव, काँटी और बरौनी तापीय विद्युत-केन्द्र प्रमुख हैं। कहलगाँव सुपर थर्मल पावर बिहार की सबसे बड़ी तापीय विद्युत परियोजना है। उसकी स्थापना 1979 ई० में की गई है। इसकी उत्पादन क्षमता 840 मेगावाट है। काँटी तापीय केन्द्र मुजफ्फरपुर के समीप है। इसकी उत्पादन क्षमता 120 मेगावाट है। बरौनी ताप विद्युत परियोजना की उत्पादन क्षमता 145 मेगावाट है। इसकी स्थापना रूस की सहायता से की गई
                  इन परियोजनाओं के अलावे कुछ प्रस्तावित तापीय परियोजनाएँ भी हैं। इनमें बाढ़ और नवीनगर तापीय विद्युत परियोजना है। इसके कार्यान्वयन से दक्षिण बिहार का बिजली संकट दूर हो जाएगा। एन०टी०पी०सी० द्वारा इस तापीय विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य हो रहा है। नवीनगर विद्युत परियोजना का निर्माण रेलवे और एन०टी०पी०सी० के संयुक्त प्रयास से हो रहा है।


20. बिहार में नगर विकास पर एक विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर- बिहार के अधिकांश प्रमुख नगर किसी न किसी नदी के किनारे विकसित हुए हैं। प्राचीन नगरों का विकास राजधानी शिक्षण संस्थान, धार्मिक स्थल अशा व्यापारिक केंद्र के रूप में हुआ है। इनमें पाटलिपुत्र, नालंदा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया, उदवंतपुरी, सीतामढ़ी आदि प्राचीन नगरों के उदाहरण है। मध्यकाल में सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि शहरों का विकास सड़कों के विकास तथा प्रशासनिक कारणों से हुआ था। ब्रिटिशकाल में रेल एवं सडक मार्गों का विकास हुआ जिसके फलस्वरूप सड़कों के किनारे नगर विकसित होने लगे। कुछ नगरों का विकास उस समय रेल व्यवस्था के कारण भी हुआ। स्वतंत्रता के बाद बिहार में नगरों के विकास में तेजी आयी। राज्य में औद्योगिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा जीवन के मौलिक सुविधाओं के विकास के कारण कई नये नगर भी विकसित हुए। इनमें बरौनी, हाजीपुर, दानापुर, डालमियानगर, मुंगेर, जमालपुर, कटिहार आदि हैं। फिर भी आज के बिहार में नगरों का विकास भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत ही कम हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की नगरीय आबादी मात्र 11.29 प्रतिशत है। जबकि भारत की नगरीय जनसंख्या 31.16 प्रतिशत है। वर्तमान समय में बिहार में एक लाख से अधिक आबादी वाले नगरों की संख्या केवल 28 है। दस लाख से ऊपर केवल पटना नगर की जनसंख्या है। यहाँ नगरीय बस्तियों की संख्या 131 है।


21. बिहार के तीन प्राकृतिक संसाधनों का नाम दें। किसी एक का बिहार में वितरण बताएँ।

उत्तर- बिहार के प्राकृतिक संसाधन निम्नलिखित हैं –

(i) मिट्टी
(ii) खनिज
(iii) वन और वन्य प्राणी तथा
(iv) जल या जलशक्ति

(i)मिट्टी का वितरण – बिहार के मैदानी भाग में सर्वत्र वाहित मिट्टियाँ पायी जाती हैं। जो नदियों के द्वारा लायी गई और जमा की गई है। यहाँ इस वाहित मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी के नाम से पुकारा जाता है। इसे कई उपवर्गों में बाँटा गया है।

(क) तराई या दलदली क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी-इसका वितरण सबसे उत्तर में 5 से 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में मिलता है। हिमालय की तराई होने, घनी वर्षा होने और घने पेड़-पौधों से भरा होने के कारण इस क्षेत्र में बहुत अधिक नमी बनी रहती है। इस मिट्टी में चूने का अंश कम होता है। रंग गाढ़ा भूरा होता है, यह बहुत उपजाऊ नहीं होती है। इसमें धान, जूट, गन्ना, आम और लीची की खेती की जाती है।

(ख) बाँगर या पुरानी जलोढ़ मिट्टी-इसका वितरण गंडक नदी के पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्र में पाया जाता है। इस मिट्टी में चूना-कंकड़ अधिक मिलता है। मिट्टी का रंग भूरा और कालिमा लिए हुए होता है। यह गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसमें मकई, जौ, गेहूँ का भी खेती की जाती है।

(ग) खादर या नई जलोढ़ मिट्टी-इसका वितरण बूढ़ी गंडक के पूरब में है। यह दोमट मिट्टी है। यह क्षेत्र बाढ़ग्रस्त रहा करता है। इसमें जूट की खेती की जाती है। इसके पश्चिमी भाग में गन्ने की खेती की जाती है। धान की भी अच्छी खेती की जाती है।

(घ) गंगा के दक्षिण मैदान की केवाल मिट्टी- यहाँ पश्चिमी भाग में बाँगर मिट्टी मिलती है। पूर्व के निम्न भागों में ताल जैसे बड़हिया का ताल मिलता है, जो दलहन की पैदावार के लिए विख्यात है। यही मिट्टी दोमट और केवाल किस्म की है।


22. आई पर्णपाती और शुष्क पर्णपाती वनों में क्या अंतर है ? इनके पेड़ों के तीन-तीन उदाहरण दें।

उत्तर-बिहार के वन मानसूनी प्रकार के हैं और पर्णपाती हैं। सामान्यतः 125 cm से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क पर्णपाती वन पाया जाता है। आंद्र पर्णपाती वनों के वृक्ष सदाबहार होते हैं जैसे आम, जामुन, कटहल, सखुआ, पलास, पीपल, सेमल, बरगद, करंग, गंभार आदि। वनों के अतिरिक्त साबेघास भी पाया जाता है। इस प्रकार के वृक्ष मुख्यतः चंपारण, सहरसा, पूर्णिया एवं अररिया के उत्तर भाग में पाये जाते हैं। शुष्क पर्णपाती वनों में भी वे सभी पेड उगते हैं जो आर्द्र पर्णपाती वनों में पाये जाते हैं। परंतु ये आकार में छोटे और कम घने होते हैं औरग्रीष्म काल के प्रारंभ में ही इनके पत्ते गिर जाते हैं। इनमें मुख्यतः शीशम, महुआ, पलास, बबूल, खजूर और बाँस के पेड़ मिलते हैं, आम, अमरूद, कटहल के पेड़ भी पाये जाते हैं। एस वन कृषि कार्य एवं आवास बनाने हेतु तेजी से काटे जा रहे हैं। फिर भी गया, दक्षिणा मुंगेर तथा दक्षिणी भागलपुर में इनकी सघनता पायी जाती है।
               नेपाल की सीमा से सटे तराई भागों में वर्षा की अधिकता के कारण आद्र पर्णपाती वन मिलते हैं जिसमें शीशम, सखुआ, सेमल तथा खैर के पेड़ों की प्रमुखता रहती है। कोसी क्षेत्र में नरकट जाति की झाडियाँ भी उगती है।


23. उच्चावच या धरातलीय रूप के आधार पर बिहार को किस प्रकार बाँटा गया है ? समझावें।

उत्तर-उच्चावच या धरातलीय रूप के आधार पर बिहार को तीन भागों में बाँटा जा सकता है –

(i) शिवालिक पर्वत श्रेणी — यह हिमालय पर्वत का निचला भाग है, जो बिहार के उत्तर-पश्चिमी भाग में पश्चिमी चंपारण जिला के उत्तरी भाग में स्थित है।

(ii) बिहार का मैदान – बिहार का मैदान बिहार की सबसे बड़ी प्राकृतिक इकाई है। यह 90,650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 96.27% है। यह गंगा के मध्यवर्ती मैदान का एक हिस्सा है, जिसका निर्माण गंगा तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा निक्षेपित
जलोढ़ से बना है।

(iii) दक्षिण का संकीर्ण पठार – यह बिहार के सुदूर दक्षिण में पठारी भाग स्थित है, जो एक संकीर्ण पट्टी के रूप में पश्चिम में कैमूर जिले से लेकर पूर्व में मुंगेर और बाँका जिले तक विस्तृत है। यह वास्तव में प्रायद्वीपीय पठार का ही एक अंग है।


Geography ( भूगोल )  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 भारत : संसाधन एवं उपयोग
2 कृषि ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
3 निर्माण उद्योग ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
4 परिवहन, संचार एवं व्यापार
5 बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
6 मानचित्र अध्ययन ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )

History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 यूरोप में राष्ट्रवाद
2 समाजवाद एवं साम्यवाद
3 हिंद-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन
4 भारत में राष्ट्रवाद
5 अर्थव्यवस्था और आजीविका
6 शहरीकरण एवं शहरी जीवन
7 व्यापार और भूमंडलीकरण
8 प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद

Political Science दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली
3 लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष
4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ
5 लोकतंत्र की चुनौतियाँ

Economics ( अर्थशास्त्र ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
2 राज्य एवं राष्ट्र की आय
3 मुद्रा, बचत एवं साख
4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ
5 रोजगार एवं सेवाएँ
6 वैश्वीकरण ( लघु उत्तरीय प्रश्न )
7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

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