जैव प्रक्रम ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) class 10th science jaiv prakram objective question for Bihar board Matric exam 2022

क्लास 10th विज्ञान जैव प्रक्रम पाठ का ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन तथा सब्जेक्टिव क्वेश्चन और जैव प्रक्रम पाठ का लघु उत्तरीय प्रश्न और दीर्घ उत्तरीय प्रश्न तथा कक्षा 10 विज्ञान का मॉडल पेपर यहां पर उपलब्ध है जिससे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं और पढ़ सकते हैं। jaiv prakram subjective question answer


1. पोषण क्या है ? जीवों में होनेवाली विभिन्न पोषण विधियों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ वह जैव प्रक्रम जिसमें जीव अपने जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने लिए भोज्य पदार्थों के पोषक तत्त्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।
जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता है –

(I) स्वपोषण – वह विधि जिसमें सजीव भोजन के लिए किसी अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित कर लेते हैं, स्वपोषण कहलाती है। इस विधि द्वारा पोषण करनेवाले जीवों को स्वपोषी कहते हैं। सभी हरे पौधे स्वपोषी होते हैं।
(ii) परपोषण – परपोषण वह विधि है, जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं। इस विधि द्वारा पोषण करनेवाले जीवों को परपोषी कहते हैं। सभी जंतु, जीवाणु एवं कवक परपोषी कहलाते हैं।


2. परपोषण कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन करें।

उत्तर⇒ परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है –

(a) मृतजीवी पोषण – इसमें जीव मृत जंतुओं एवं पादपों के शरीर से अपना भोजन, अपने शरीर की सतह से, घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। ऐसे जीवों को मृतजीवी या अपघटक भी कहते हैं, जैसे—कवक एवं बैक्टीरिया।

(b) परजीवी पोषण – इस प्रकार के पोषण में जीव दूसरे प्राणी के संपर्क में स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। भोजन प्राप्त करनेवाले जीव परजीवी एवं जिनके शरीर से परजीवी अपना भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें पोषी (hot) कहते हैं। उदाहरण के लिए एंटअमीबा हिस्टोलीटिका, मलेरिया परजीवी इत्यादि।

(c) प्राणिसम पोषण – जीवों में पोषण की वह विधि जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, प्राणिसम पोषण कहलाता है। इस विधि द्वारा जंतुओं (अमीबा, मेढक, मनुष्य) में पोषण होता है।

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3. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की आवश्यकता क्यों होती है ? – व्याख्या करते हुए समझाएँ ।

उत्तर⇒रक्त हृदय में दो बार परिसंचरण के दौरान गुजरता है इसलिए इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं। हृदय के बायें आलिंद का संबंध फुफ्फुस शिरा से होता है जो फेफड़ों में ऑक्सीजनयुक्त रक्त को लाती है। बायें आलिन्द का संबंध एक दिकपाट द्वारा बायें निलय से होता है। अत: बायें आलिन्द का संबंध एक दिक्पाट बायें निलय से होता है। अत: बायें आलिन्द का ऑक्सीजन युक्त रक्त कपाट खोलकर बायें निलय में भरा जाता है। बायें निलय का संबंध एक महाधमनी से होता है। अत: बायें निलय का ऑक्सीजन युक्त रक्त इस महाधमनी से होकर पूरे शरीर में चला जाता है। फिर शरीर विभिन्न भागों से ऑक्सीजन विहीन अशुद्ध रक्त महाशिरा द्वारा दायें आलिन्द में आता है। दायें आलिंद और दायें निलय के बीच त्रि-कपाट होता है। अतः दायें आलिन्द का रक्त इस कपाट से होकर दायें निलय में आ जाता है । दायें निलय का संबंध फुफ्फुस धमनी से होता है जो फेफड़ों तक जाती है। वहाँ उसकी कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़ों में चली जाती है और ऑक्सीजन रक्त में आ जाता है।


4. मानव के रक्त के कार्यों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ रक्त के कार्य रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है ।

(i) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।
(ii) यह शरीर की कोशिकाओं से CO2को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।
(iii) यह पचे भोजन को छोटी आँत से शरीर के विभिन्न भागों में पहँचाता है।
(iv) यह शरीर को विभिन्न रोगाणुओं के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि रक्त के घटक WBC. शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करते हैं।
(v) रक्त पट्टिकाणु, रक्त जमने में सहायक होते हैं ।


5. वृक्क का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन करें।

उत्तर⇒ मनुष्य के वृक्क में निम्नलिखित रचनाएँ पाये जाते हैं।

(1) वृक्क (Kidney) :- मनुष्य में दो ववक होते हैं। यह गहरे भूरे-लाल रंग के होते हैं। दोनों वृक्क उदरगुहा की पष्ठीय देहभित्ति में कशेरूकदंड के दोनों ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क का बाहरी सतह उत्तल (Convex) तथा भीतरी सतह अवतल (Concave) होता है। वृक्क के आंतरिक अवतल सतह को हीलस (hilus) कहते हैं।

(2) मत्रवाहिनी (Ureters) :- प्रत्येक वृक्क के हीलस से 20-30 cm लंबी नली के आकार की रचना निकलती है, जिसे मत्रवाहिनी कहते हैं। प्रत्येक मूत्रवाहिनी आगे की ओर मूत्राशय में खुलती है।

(3) मूत्राशय (Urinary bladder) :- यह एक थैली के आकार की रचना है, जो उदरगुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होती है। मूत्राशय का ऊपरी चौड़ा भाग मुख्य भाग होता है तथा पिछला भाग मूत्राशय की ग्रीवा कहलाती है। मूत्राशय में 0.5 से 1 लीटर तक पेशाब जमा रहता है।

(4) मूत्रमार्ग (Urethra) :- मूत्राशय की ग्रीवा से एक नली निकलती है जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं।

वृक्क की रचना का चित्र


6. वृक्क के महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हैं ?

उत्तर⇒ वृक्क रक्त में जल की उचित मात्रा को बनाए रखने में सहायक होता है। यह रक्त में खनिज की सही समानता बनाए रखता है। यह शरीर से दूषित पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं अन्यथा अगर यह शरीर में रहे तो उस जीव के लिए खतरनाक साबित होते हैं। वृक्क रक्त के संपूर्ण आयतन को व्यवस्थित करता है। शरीर में अत्यधिक रक्तस्राव होने से रक्तचाप कम हो जाता है, जिससे कम मात्रा में ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट बनता है व वृक्क से निम्न मात्रा में मूत्र का उत्सर्जन होता है। इस प्रकार शरीर में तरल पदार्थ की अवस्था में सभी लवण, ग्लूकोज और अन्य पदार्थ संचित रहते हैं।


7. होमिओस्टेसिस क्या है ?

उत्तर⇒ वृक्क हमारे शरीर में जल, अम्ल, क्षार तथा लवणों को संतुलन बनाये रखने में मददगार होता है। मूत्र के निर्माण व उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के बाहर निकालने के अतिरिक्त रुधिर में अतिरिक्त जल की मात्रा को मूत्र के रूप में शरीर से वृक्क बाहर निकालता है। इसी प्रकार वृक्क के कारण रुधिर में लवण सदैव एक निश्चित मात्रा में मिलते हैं। अमोनिया रुधिर के H की अधिकता को कम करके रुधिर में अम्ल-क्षार संतुलन बनाने में सहायता देती है। वृक्कों द्वारा ही विष, दवाइयाँ आदि हानिकारक पदार्थों का भी शरीर से विसर्जन होता है। अतः वे सारी क्रियाएँ जिनसे शरीर में एक स्थायी अवस्था बनी रहती है, होमिओस्टेसिस कहलाती हैं।


8. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?

उत्तर⇒ लार एक पाचक रस है जो कि तीन जोड़ी लार ग्रंथियों से स्रावित होती है। मुँह में भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्नलिखित हैं –

(i) यह मुख के खोल में चिकनाई पैदा करती है जिससे चबाते समय रगड़ कम होती है।
(ii) यह भोजन को चिकना एवं मुलायम बनाती है।
(iii) यह भोजन को पचाने में मदद करती है।
(iv) इसमें एमिलेस नामक एक एंजाइम होता है जो मंड जटिल अणु को व लार को पूरी तरह मिला देता है।
(v) इसमें विद्यमान टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च का पाचन कर उसे माल्टोज में बदल देता है।


9. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे ?

उत्तर⇒ जीवों का शरीर कोशिकाओं का बना हुआ होता है एवं इसके जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार के अणुओं का समायोजन होता है। सजीव और निर्जीव पदार्थों में अणुओं के विन्यास व संयोजन या व्यवस्था का सबसे बड़ा अंतर होता है। जीवित पदार्थों में अणुओं का विशेष प्रकार से संयोजन होने के कारण ही जीवों का निर्माण संभव हो पाता है। जीवन का मुख्य आधार है जीवद्रव्य (Protoplasm) जो कि न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleo protein) अणुओं के साथ अन्य तत्त्वों के अणुओं के संयोजन से बनता है। जीवद्रव्य में सजीवों के सारे गुण पाये जाते हैं। इसमें उपस्थित विभिन्न अणुओं की विशेष व्यवस्था एवं गति आणविक गति कहलाती है जो निर्जीवों में नदारद होती है। इन्हीं मापदंडों का उपयोग हम किसी वस्तु के सजीव होने में करेंगे।


10. बीजाणुजनन से क्या समझते हैं ? सचित्र समझाएँ।

उत्तर⇒बीजाणुजनन अलैंगिक जनन की एक उन्नत विधि है। यह मुख्य रूप से निम्न श्रेणी के जीवों जैसे—जीवाणु, शैवाल एवं कवक आदि में पाई जाती है। बीजाणुधानियाँ एक सूक्ष्म थैली जैसी संरचनाएँ हैं जो प्रतिकूल परिस्थिति में निर्मित होती है। इनके अंदर असंख्य गोलाकार सूक्ष्म जीवाणु या स्वोर का निर्माण होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे—उच्चतापमान, उच्च अम्लीयता या उच्च क्षारीयता सूखापन आदि में बीजाणुधानी के चारों ओर एक मोटे एवं कड़े आवरण का निर्माण हो जाता है। अनुकुल परिवेश में बीजाणु अंकुरित होने लगते हैं जिससे उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर आ जाती हैं।बीजाणुजनन से क्या समझते हैं


11. पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ किस रूप में निष्कासित करते हैं ?

उत्तर⇒ पौधे अपना उत्सर्जन जंतुओं से बिलकुल भिन्न रूप में युक्ति अपनाकर करते हैं । प्रकाशसंश्लेषण में जनित ऑक्सीजन भी एक अपशिष्ट उत्पाद है । पौधे अतिरिक्त जल से वाष्पोत्सर्जन द्वारा छुटकारा पा सकते हैं । पौधे अपने कुछ उत्पाद जैसे-पत्तियों का क्षय भी कर सकते हैं । बहुत से पादप अपशिष्ट उत्पाद कोशिका रिक्तिका में संचित रखते हैं । पौधों से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं । अन्य अपशिष्ट उत्पाद रेजिन तथा गोंद के रूप में विशेषतया पुराने जाइलम में संचित रहते हैं । पादप भी कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते हैं।


12. रक्तदाब क्या है ?

उत्तर⇒ रुधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरुद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते हैं । यह दाब शिराओं की अपेक्षा धमनियों में बहुत अधिक होता है । धमनी के अंदर रुधिर का दाब निलय प्रकुंचन (संकुचन) के दौरान प्रकुंचन दाब तथा निलय अनुशिथिलन (शिथिलन) के दौरान धमनी के अंदर का दाब अनुशिथिलन दाब कहलाता है । सामान्य प्रकुंचन दाब लगभग 120mm (पारा) तथा अनुशिथिलन दाब लगभग 80mm (पारा) होता है।

चित्र: रक्त दाब


13. रक्त क्या है? इसके घटकों का वर्णन करें।

उत्तररक्त-रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है। यह लाल रंग का गाढ़ा क्षारीय (pH = 7.4) तरल पदार्थ है जो हृदय तथा रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है।
रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं – (1) प्लाज्मा (2) रक्त कोशिकाएँ ।

(1) प्लाज्मा—यह रक्त का तरल भाग है। यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से परे रक्त का करीब 55 प्रतिशत होता है। प्लाज्मा में करीब 90% जल, 7% प्रोटीन, 0.9%, अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं।

(2) रक्त कोशिकार –यह रक्त का ठोस भाग है जो कल रक्त का करीब 45 प्रतिशत है।
जिसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं –

(i) लाल रक्त कोशिकाएँ (R.B.C) – इसमें एक विशेष प्रकार का प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) पाया जाता है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।

(ii) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (W.B.C) – ये अनियमित आकार की न्यूक्लियस युक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन नहीं रहने के कारण रंगहीन होते हैं।

(iii) रक्त पट्टिकाणु – ये बिंबाणु या थ्रोम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। इसका प्रमुख कार्य रक्त को थक्का बनने में सहायक होना है।


14. मानव नेफ्रॉन का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर वर्णन करें।

उत्तर⇒प्रत्येक वृक्क में लगभग 10,00,000 वृक्क नलिकाएँ होती हैं जिसे नेफ्रॉन कहते हैं।
मानव नेफ्रॉन को निम्नलिखित प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है –

(i)बोमैन संपूट (Bowman’s Capsule) – यह वृक्क-नलिका के आरंभ में प्याले जैसी संरचना है जो कोशिका गुच्छ या Glomerulus नामक रक्त कोशिकाओं के एक जाल को घेरता है। Bowman’s capsule एवं Glomerulus को सम्मिलित रूप से Malpighian capsule कहते हैं।

(ii) कुंडलित नलिका – इसके दो प्रमुख भाग हैं— (क) हेनले का चाप (Henle’s loop), (ख) संग्राहक नलिका (Collecting tubule)

(iii) सामान्य संग्राहक नली (Common collecting duet) – जो अंत में मूत्र-वाहिनी से जुड़ा होता है। मानव नेफ्रॉन रक्त में मौजूद द्रव्य अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में निकालने में मदद करता है।

सामान्य संग्राहक नली


15.नलिकाओं द्वारा खाद पदार्थों का परिवहन को चित्र के द्वारा दर्शाएँ।

उत्तर⇒


16. मनुष्य में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाओं का चित्र बनाएँ।

उत्तर⇒

रक्त कोशिकाओं


17. प्रकाश-संश्लेषण क्रिया को कौन-कौन से कारक प्रभावित करने हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को निम्न कारक प्रभावित करते हैं –

(i) प्रकाश – प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सूर्य-प्रकाश में होती है, इसलिए । प्रकाश का प्रकार तथा उसकी तीव्रता इस क्रिया को प्रभावित करती हैं। प्रकाश की लाल एवं नीली किरणों तथा 100 फुट कैंडल से 3000 फुट कैंडल तक प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर को बढ़ाती है जबकि इससे उच्च तीव्रता पर यह क्रिया सका | जाती है।
in co2 वातावरण में Co2, की मात्रा 0.03% होती है। यदि एक सीमा तक Co2, की मात्रा बढ़ाई जाए तो प्रकाश-संश्लेषण दर भी बढ़ती है लेकिन अधिक होने से घटने लगती है।

(ii) तापमान प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35°C का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है। इससे अधिक या कम होने पर दर घटती-बढ़ती रहती है।

(iv) जल – इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है। जल की कमी होने से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है क्योंकि जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बंद हो जाते हैं और प्रकाश संश्लेषण दर घट जाती है।

(v) ऑक्सीजन – प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सांद्रता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है लेकिन यह पाया गया है कि वायुमंडल में ), की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है।


18. पौधों में प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया को सचित्र दर्शाइए।

उत्तर⇒प्रकाशसंश्लेषण एक जटिल जैव प्रक्रम है जिसमें हरे पौधे सूर्य के विकिरण ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। हरी पत्तियों में अवस्थित क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न विकिरण ऊर्जा को अवशोषित कर इनके जल को H20एवं 02में विभक्त करती है। 02 रंधों द्वारा बाहर निकल जाता है। H2 C02 से संयोग कर ग्लूकोज बनाता है। इस प्रक्रम के दौरान तीन मुख्य रासायनिक घटनाएँ होती हैं –

(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण
(ii) प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटन
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन

कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन


19. प्रकाशसंश्लेषण के लिए पौधों को सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है। प्रयोग द्वारा समझाइए।

उत्तर⇒उदेश्य – प्रकाशसंश्लेषण की अभिक्रिया में प्रकाश की अनिवार्यता प्रदर्शित करना।

आवश्यक उपकरण एवं सामग्री – गमला सहित एक स्वच्छ पौधा, गैनोंग का लाइटस्क्रीन अथवा काला कागज एवं क्लिप, चिमटी, त्रिपाद स्टैण्ड, तार की जाली, स्पिरिट लैम्प, पेट्रीडिश एवं बीकर, जल ऊष्मक, ऐल्कोहॉल एवं आयोडीन, माचिस।

सिद्धान्त – प्रकाशसंश्लेषण पौधों का एक महत्त्वपूर्ण जैविक प्रक्रम है जिसमें हरे पौधे अपनी पत्तियों में स्थित क्लोरोफिल की सहायता से वायुमंडलीय CO2, सूर्य का प्रकाश एवं जल (H2O) का उपयोग कर अपना भोजन (ग्लूकोज) संश्लेषित करते हैं।

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प्रकाशसंश्लेषण की अभिक्रिया में सूर्य का प्रकाश एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

कार्यविधि –
(i) दो-तीन दिनों तक आप एक गमले को स्वच्छ पौधे के साथ अंधेरे में रखें। इससे उसकी पत्तियाँ पूरी तरह से स्टार्च रहित हो जाएगी।
(ii) इस पौधे के किसी एक पत्ती के बीचों-बीच का भाग गैनोंग लाइटस्क्रीन अथवा काला कागज द्वारा अच्छी तरह से ढंक दें।
(iii) अब इस पूरे गमले को 3-4 घंटों तक सूर्य के प्रकाश में छोड़ दें।
(iv) ढंकी हुई पत्ती को तोड़कर हटाने के उपरान्त गैनोंग का लाइटस्क्रीन या काला कागज हटा दें।
(v) अब इस पत्ती को बीकर में रखे पानी में लगभग 10 मिनट तक अच्छा तरह उबालें।
(vi) अब एक दूसरे बीकर में ताजा ऐल्कोहॉल लें तथा उबली हुई पत्ता का इसमें पूरी तरह डूबो दें।
(vii) अब ऐल्कोहॉल वाले बीकर को जलऊष्मक पर लगभग 15 मिनट तक अच्छी तरह उबालें। इससे पत्ती का संपूर्ण क्लोरोफिल बाहर निकल जाएगा तथा पत्ती रंगहीन हो जाएगी ।
(viii) पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें तथा पेट्रीडिश से सारा जल गिरा दें। अब इस पत्ते पर आयोडीन का विलयन डालें तथा रंग परिवर्तन का ध्यानपूर्वक देखें।

पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें


20. प्रायोगिक विवरण द्वारा बताएँ कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

उत्तर⇒ उद्देश्य प्रयोग द्वारा यह दर्शाना कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

आवश्यक उपकरण एवं सामग्री – एक बीकर, test tube, funnel और एक जलीय पौधे जैसे—हाइड्रिला।

सिद्धांत – प्रकाश संश्लेषण एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें पौधे सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) का उपयोग कर अपना भोजन (ग्लूकोस) का निर्माण करते हैं।

पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें

इस प्रक्रिया के अंत में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

कार्यविधि –
(i) एक बीकर में 2/3 भाग पानी लेंगे।
(ii) हाइड्रिला के पौधे को पानी में डाल देंगे और उसे Funnel से ढंक देंगे।
(iii) एक test tube में पानी भरकर उसे funnel के ऊपर उल्टा रख देंगे।
(iv) इस पूरे उपकरण को सूर्य की रोशनी में रख देंगे।

अवलोकन –
(i) कुछ समय के बाद हम पाते हैं कि हाइड्रिला के कटे हुए भाग से गैस का बुलबुला निकल रहा है जो Test tube के ऊपरी भाग में एकत्रित हो रहा है। जिसके कारण पानी का स्तर test tube में नीचे की ओर चला जाता है।
(ii)एकत्रित गैस ऑक्सीजन है अथवा नहीं, इसे जानने के लिए जलती हुई माचिस की तीली ले जाते हैं तो हम पाते हैं कि तीली तेजी से जलने लगती है।

निष्कर्ष – इस प्रयोग से साबित होता है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

अवलोकन

चित्र: प्रकाश संश्लेषणकी क्रिया से ओक्सीजन गैस मुक्त होती है ।


21. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है ?

उत्तर⇒ स्तनधारी तथा पक्षियों का हृदय चार वेश्मी होता है। ऊपरी दो कक्ष दायाँ व बायाँ अलिन्द तथा निचले दोनों कक्ष दाहिना व बायाँ निलय कहलाते हैं। दाहिने अलिन्द में शरीर से आनेवाला अशुद्ध रुधिर एकत्र होता है जबकि बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आनेवाला शुद्ध रक्त एकत्र होता है। इस प्रकार से शुद्ध रुधिर व अशुद्ध रुधिर आपस में मिल नहीं पाते। रुधिर के दोनों प्रकार के न मिलने से ऑक्सीजन का वितरण सही तरीके से संभव हो पाता है। इस प्रकार का रुधिर संचरण विशेष रूप से उन जंतुओं के लिए अधिक लाभदायी है जिन्हें दैनिक कार्यों के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की अधिक आवश्यकता शरीर के तापक्रम को सम बनाए रखने के लिए होती है।


22. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।

अथवा, ऑक्सी एवं अनॉक्सी श्वसन में अन्तर लिखें एवं अनॉक्सी श्वसन की क्रियाविधि लिखें।

उत्तर ⇒

वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन
(i) खाद्य पदार्थों के विश्लेषण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। (i) इस प्रकार के श्वसन में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती।
(ii) कोशिका के कोशिका द्रव्य में वाली क्रिया ग्लाइकोलिसिस कहलाती है जबकि माइटोकॉण्ड्यिा में होने वाली श्वसनीय क्रियाक्रैब चक्र कहलाती है। (ii) यह क्रिया केवल कोशिका द्रव्य में होने ही होती है।
(iii) इस क्रिया में 38 ATP अणु निर्मित होते हैं। (iii) इस क्रिया में A.T.P के केवल दो अणु ही बनते हैं।
(iv) इस क्रिया में अन्तिम उत्पाद CO2तथा जल होता है। (iv) इस क्रिया के अन्तिम उत्पाद इथाइल ऐल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड है।
(v) यह क्रिया सभी जीवधारियों में पायी जाती है (v) यह क्रिया कुछ ही जीवधारियो जी पायी जाती है।
(vi) इस क्रिया में खाद्य पदार्थ का पूर्णरूप से अपचयन होता है। (vi) इस क्रिया में भोजन रूप से अपचयन होता है।

23. डायलिसिस की प्रक्रिया को चित्र सहित समझाएँ।

उत्तर⇒कई बार विपरीत परिस्थितियों के कारण गुर्दे अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर पाते हैं। शरीर में बनने वाला यूरिया तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों को यह रक्त से छानने में समर्थ नहीं होते जिससे रक्त में विषैले पदार्थ बढ़ने लगते हैं। तब हम डायलिसिस यंत्र का प्रयोग करना पड़ता है जिससे रक्त का शुद्धिकरण किया जाता है। इस यंत्र में रक्त सेलोफोन झिल्ली की बनी नलिकाओं में बहता है। इन नलिकाआ के बाहर रक्त का समपरासी लवण द्रव को बहाया जाता है। तब नलिकाओं के अंदर बहते रक्त से उत्सर्जी पदार्थ अलग होकर यंत्र के द्रव में आ जाते हैं और रक्त यूरिया व अन्य उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता है। इस क्रिया के बाद रक्त को शरीर में वापस भेज दिया जाता है ।

रक्त कोशिकाओं


24. मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है ?

उत्तर⇒ यह अति आवश्यक है कि हॉर्मोन का स्रावण परिशुद्ध मात्रा में हो। इसके लिए एक सही क्रियाविधि की आवश्यकता होती है जिससे यह कार्य संपन्न हो। स्रावित होने वाले हॉर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्रण पुनर्भरण क्रियाविधि (leedback mechanism) द्वारा किया जाता है। इसलिए इससे रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है तो इसे अग्न्याशय (pancreas) की कोशिका संसूचित कर लेती है तथा इसकी अनुक्रिया में अधिक इंसुलिन नावित करती है। जब रुधिर में शर्करा स्तर कम हो जाता है तो इंसुलिन का स्रवण कम हो जाता है। अग्न्याशय (pancreas) की कोशिकाएँ-लैंगरहैंस द्वीपिकाओं (Islets of Langerhans) के हॉर्मोन रक्त में ग्लूकोज की उचित मात्रा को जब नहीं नियंत्रित कर पाते तब मधुमेह नामक रोग हो जाता है। इसीलिए रक्त में ग्लूकोज की उचित मात्रा हेतु कुछ रोगियों को मधुमेह में इंसुलिन का इंजेक्शन देकर चिकित्सा की जाती है।


25. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिये।

उत्तर⇒ फुफ्फुस की कूपिकाओं की व वृक्क में वृक्काणु की रचना तथा क्रियाविधि का तुलनात्मक अंतर –

फुफ्फुस की कूपिका वृक्क के वृक्काणु
(i) एक वयस्क फुफ्फुस में लगभग 30 करोड़ कूपिकाएँ होती है। (i) एक वृक्क में लगभग दस लाख वृक्काणु है।
(ii) कूपिकाएँ गैसीय विनिमय के लिए वृहद् सतह बनाती हैं। (ii) वृक्काणु रुधिर को शुद्ध करने लिए एक वृहद् सतह बनाती हैं।
(iii) कूपिकाओं में फैली हुई रुधिर कोशिकाओं के जाल से CO2 और 02 का आदान – प्रदान होता है। (iii) वृक्काणु के बोमैन संपुट में रुधिर छनता है जिसमें कि जल और लवणों की सांघ्रता का नियमन होता है।

26. (i) अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाड़ी के शरीर में क्रैंप होने लगता है। क्यों ?
      (ii) जब एड्रिनलीन हारमोन रुधिर में मिल जाता है, तो शरीर में क्या अनुक्रिया होती है ?

उत्तर⇒ (i) अत्यधिक व्यायाम के समय खिलाड़ियों की मांसपेशियों में कैम्प होने का कारण यह है कि अत्यधिक व्यायाम के कारण मांसपेशियों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे ग्लूकोज के विघटन से प्राप्त प्रथम उत्पाद पायरुवेट तीन कार्बन युक्त लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है । इसी लैक्टिक अम्ल.के मांसपेशियों में एकत्रित होने के कारण क्रेम्प उत्पन्न होने लगते हैं।

(ii) एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित हो जाता हैं और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिया जाता है । हृदय सहित, अन्य अंगों तक तथा विशिष्ट ऊतकों पर यह कार्य करता है । इस कारणवश हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, ताकि हमारी पेशियों में अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके। पाचन तंत्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम हो जाती है, क्योंकि इन अंगों की छोटी धमनियों के आसपास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं । यह रुधिर की दिशा हमारी कंकाल पेशियों की ओर कर देता है। डायफ्राम तथा पसलियों की पेशी के संकुचन से श्वसन दर भी बढ़ जाती है। यह सभी अनुक्रियाएँ मिलकर जंतु शरीर को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं। ये जंतु हॉर्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों का भाग हैं जो हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का दूसरा मार्ग है।


27. मनुष्य के कतर्नक दाँत का चित्र बनाएँ।

उत्तर⇒
मनुष्य के कतर्नक दाँत का चित्र बनाएँ

 

 

 

 

 

 


28. मानव हृदय का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ। वर्णन की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर⇒


चित्र: मनुष्य के हृदय की आंतरिक रचना
चित्र: मनुष्य के हृदय की आंतरिक रचना


29. अमीबा में पोषण की प्रक्रिया को चित्र के साथ समझाइए।

उत्तर⇒अमीबा में भोजन का अंतर्ग्रहण शरीर की किसी भी सतह से हो सकता है। अमीबा का शरीर जैसे ही किसी भोजन के संपर्क में आता है, उस दिशा में कूटपाद (Pseudopodia) तेजी से बढ़ने लगते हैं, तथा भोजन को चारों तरफ घेर लेते हैं।

 चित्र अमीबा में अपचे भोजन का बहिष्करण

धीरे-धीरे कूटपादों के शीर्ष तथा पार्श्व आपस में युग्मित हो जाते हैं तथा एक पर्ण भोजन रसधानी का निर्माण होता है। अमीबा में अंतः कोशिकीय पाचन होता बीपचा हआ भोज्य पदार्थ भोजन रसधानी से कोशिका द्रव्य में विसरित हो जाता है तथा पूरे शरीर में स्वांगीकृत हो जाता है


30: मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

उत्तर⇒ श्वसन की दो अवस्थाएं प्रश्वास (inspiration) तथा उच्छवास (expiration) मिलकर श्वासोच्छ्वास (breathing) कहलाते हैं। प्रश्वास द्वारा वायमंडलीय हवा नासिका तथा श्वसन से होती हुई फफड़ों की वायु कोष्ठिकाओं में पहुँच जाती के विभिन्न भागों में अनाक्साकृत रक्त (deoxygenated blood) पहले हृदय में पहुंचता है जहाँ से इसे फेफड़े में भेज दिया जाता है। यह रक्त शिरीय रक्त (Tvenous blood) भी कहलाता ह। शिराय रक्त फेफडे की वाय कोशिकाओं के चारों ओर स्थित रक्त कोशिकाओं में पहुंच जाता है। रक्त कोशिकाओं में शिरीय रक्त में वायमण्डलीय हवा से जो कि वायु कोष्ठिकाओं में होता है, ऑक्सीजन की मात्रा बहत कम होती है। अतः यहाँ ऑक्सीजन का आंशिक दबाव बहत अधिक होता है जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन का विसरण (diffusion) वाय कोष्ठिकाओं से शिरीय रक्त में हो जाता है। यहाँ लाल रुधिर कोशिकाओं (RBC) के हीमोग्लोबिन (haemoglobin) ऑक्सीजन से संयोजन कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) परिवर्तित हो जाते हैं और यह रुधिर संचरण द्वारा शरीर के विभिन्न भागा मस्थित कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं। ऑक्सीहीमोग्लोबिन पुनः टूटकर हीमोग्लोबिन और ऑक्सीजन बनाता है। यह ऑक्सीजन भोजन अणुओं को ऑक्सीकृत कर ऊर्जा उत्पादन करता है। इधर उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड विसरण द्वारा कोशाओं से रुधिर कोशिकाआ के रक्त में पहुँचता है। यह रुधिर के हीमोग्लोबिन से संयोजन कर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाते हैं जो परिसंचरण द्वारा इसी रूप में फेफड़ों में पहँचता है। फेफड़ों की शिरीय रुधिर कोशिकाओं में कार्बन डाइऑक्साइड के आंशिक दबाव अधिक होने के कारण इसका विसरण वायु कोष्ठिकाओं में हो जाता है। यहाँ से उच्छ्वास द्वारा इसे श्वासनली तथा नासिका द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन तथा विनिमय का व्यवस्थात्मक निरूपणचित्र: ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन तथा विनिमय का व्यवस्थात्मक निरूपण


31. रक्त और लसिका में अंतर लिखें।

उत्तर⇒ रक्त और लसिका में निम्नलिखित अंतर हैं-

रक्त (Blood) लसीका (Lymph)
(i) रक्त का रंग लाल होता है। (i) लसीका रंगहीन या हल्के पीले रंग की होती है।
(ii) रक्त में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) पाई जाती हैं। (ii) लसीका में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) नहीं पाई जाती हैं।
(iii) रक्त वाहिनियाँ में प्रवाहित होती है। (iii) लसीका कोशिकाओं के बीच स्थित स्थानों में प्रवाहित होती है।
(iv) रक्त में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। (iv) लसीका में रक्त की अपेक्षा प्रोटीन की मात्रा कम होती है।

 


32. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?

उत्तर⇒ पौधों में उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके होते हैं । जैसे-

(i) श्वसन क्रिया से निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड गैस व प्रकाशसंश्लेसन से निष्कासित ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रो एवं अन्य भागों में स्थित वातरंध्रों द्वारा उत्सर्जित होती है।

(ii) बहुत से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को बनाते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं (जैसे-अंतः काष्ठ) में संचयित रहते हैं। जैसे—रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में होता है।

(iii) कुछ पधि उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तियों व छाल में भी संचित करते हैं। जैसे-टैनिन वृक्षों की छाल में संचित रहता है।

(iv) कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढे, दधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स (latex) कहते हैं। उदाहरण पीपल, बरगद, कनेर इत्यादि।
(v) जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं।


33. जल-संतुलन क्या है ? यह मनष्य में कैसे होता है ?

उत्तर⇒ शरीर में जल की संतुलित मात्रा का होना भी अनिवार्य है। शरीर में जल की मात्रा का संतुलन जिस क्रिया के द्वारा होता है, उसे ‘जल-संतुलन’ कहते हैं।
वृक्क शरीर के उत्सर्जन के साथ-साथ शरीर के प्रयोजन के अनुसार मूत्र को हाइपोटॉनिक या हाइपरटोनिक बनाकर जल तथा लवणों की मात्रा का नियंत्रण करता है, क्योंकि जब शरीर में जल की मात्रा अधिक हो जाती है तब वृक्क को हाइपोटोनिक मूत्र त्याग करना होता है। जब शरीर में जल-संरक्षण करना होता है, तब इसे हाइपरटोनिक मूत्र त्याग करना होता है। यह क्रिया वृक्क के द्वारा संपन्न होती है।


34. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से विभिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग क्या हैं ?

उत्तर⇒ ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने की दो परिस्थितियाँ संभव हैं –
(i) अवायवीय (anaerobic)-ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ।
(ii) वायवीय (aerobic)-ऑक्सीजन की उपस्थिति में ।

सर्वप्रथम, इसे समझने के लिए हम एक चार्ट की मदद ले सकते हैं

ऑक्सीजन का

सभी अवस्थाओं में पहला चरण ग्लूकोज, एक छ: कार्बन वाले अणु का तीन कार्बन वाले अणु पायरुवेट में विखंडन है। यह प्रक्रम कोशिकाद्रव्य में होता है । इसके पश्चात् पायरुवेट इथेनॉल तथा कार्बन डायऑक्साइड में बदल सकता है । यह प्रक्रिया किण्वन के समय होता है व वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता है। इसे इसलिए अवायवीय (anaerobic) श्वसन कहते हैं। पायरुवेट का विखंडन ऑक्सीजन का उपयोग करके माइट्रोकोण्ड्रिया में होता है । चूँकि यह वायु की उपस्थिति में होता है, इसलिए इसे वायवीय (aerobic) श्वसन कहते हैं । कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा तत्काल ही ए०टी०पी० (ATP) नामक अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है जो कि अन्य क्रियाओं के लिए ईंधन की तरह प्रयुक्त होती है।

35. जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता क्यों होती है ? कोई पाँच कारण लिखिए ।

उत्तर ⇒ वह विधि जिसके द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण कर उसका उपयोग करते हैं पोषण कहलाता है।

जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता निम्नलिखित कारण से जरूरी है –

(i) ऊर्जा – पोषण से जीवों को ऊर्जा की वाद्य आपूर्ति होना आवश्यक है, नहीं तो जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

(ii) जैविक क्रियाओं – जैविक क्रियाओं के संपादन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा की प्राप्ति पोषण के द्वारा होता है।

(iii) कोशिकाओं के निर्माण एवं मरम्मत – नई कोशिकाओं और ऊतकों के निर्माण एवं ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत हेतु नये जैव पदार्थों का संश्लेषण भी भोजन के द्वारा ही प्राप्त होता है।

(iv) स्व-पोषण – स्व-पोषण में जीव सरल अकार्बनिक तत्वों से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं करते हैं।

(v) पर-पोषण-पर –पोषण में जीव अपना भोजन अन्य जीवों से जटिल और ठोस पदार्थ के रूप में प्राप्त करते हैं।


36. मनष्य के उत्सर्जी तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ वृक्क एवं इसके अनेक सहायक अंग मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र कहते हैं वृक्क उत्सर्जन तंत्र का प्रमुख अंग है जो केवल उत्सर्जीवायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन)—इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके पदार्थों को उपयोग पदार्थों से छानकर अलग कर देता है । वृक्क भूरे रंग का, सेम के बीज के आकारकी संरचनाएँ हैं, जो कि उदरगुहा में कशेरूक दंड के बायाँ वृक्क धमनी दोनों तरफ होती है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 2.5 सेमी० बायाँ वृक्क मोटा होता है । यकृत की वजह बायीं वृक्क शिरा से दायाँ वृक्क का बाहरी महाधमनी किनारा उभरा हुआ होता है बायीं जबकि भीतरी किनारा सा महाशिरा मूत्रवाहिनी होता है जिसे हाइलम कहते हैं और इसमें से मूत्र नलिका निकलती है। मूल नलिका जाकर एक पेशीय थैले जैसी (शिश्न में) संरचना में खुलती है जिसे मूत्राशय कहते हैं।

 


37. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?

उत्तर ⇒ श्वसन एक जटिल पर अति आवश्यक प्रक्रिया है । इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है तथा ऊर्जा मुक्त करने के लिए खाद्य का ऑक्सीकरण होता है।

C6H120+606 → 6C02 +6H20 + ऊर्जा

श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है । श्वसन क्रिया दो प्रकार की होती है—

(i) वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन) – इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में ग्लूकोज पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है।

वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन)—इस प्रकार के श्वसन में अधि

चूँकि यह प्रक्रिया वायु की उपस्थिति में होती है, इसलिए इसे वायवीय श्वस कहते हैं।

(ii) अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन) –यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है । जीवाणु और यीस्ट इस क्रिया से श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में इथाइल ऐल्कोहॉल CO, तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।

इड और जल में विखंडित हो जाता है।

(iii) ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर कभी – कभी हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। पायरूवेट के विखंडन के लिए दूसरा रास्ता अपनाया जाता है। तब पायरूवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है। इसके कारण कैम्प हो जाता है।
अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन) -यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अ


38. मनुष्य के हृदय की संरचना और क्रिया विधि समझाइए।

उत्तर ⇒
मनुष्य के हृदय की संरचना और क्रिया विधि समझाइए।

संरचना – मनुष्य का हृदय चार भागों में कोष्ठों में बँटा रहता है-अग्र दो भाग आलिंद कहलाते हैं। इनसे एक बायाँ आलिंद तथा दूसरा दायाँ आलिंद होता है। पश्व दो भाग निलय कहलाता है जिनमें एक बायाँ निलय तथा दूसरा दायाँ निलय होता है । बाँयें आलिंद एवं बाँयें निलय के बीच त्रिवलनी कपाट तथा दाएँ आलिंद एवं दाएँ निलय के बीच त्रिवलीन कपाट होते हैं। ये वाल्व निलय की ओर खुलते हैं । बाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार द्वारा महाधमनी से तथा दाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार कपाट द्वारा फुफ्फुस धमनी से होता है। दाएँ आलिंद से महाशिरा आकर मिलती है तथा बाएँ आलिंद से फुफ्फुस शिरा आकर मिलती है।

हृदय की क्रियाविधि – हृदय के आलिंद व निलय में संकुचन व शिथिलन दोनों क्रियाएँ होती हैं। यह क्रियाएँ एक निश्चित क्रम में निरंतर होती हैं। हृदय की एक धड़कन या स्पंदन के साथ एक कर्डियक चक्र पूर्ण होता है।

एक चक्र में निम्नलिखित चार अवस्थाएँ होती हैं –

(i) शिथिलन –इस अवस्था में दोनों आलिंद शिथिलन अवस्था में रहते हैं और रुधिर दोनों आलिंदों में एकत्रित होता है।

(i) आलिंद संकुचन – आलिंदों के संकुचित होने को आलिंद संकुचन कहते हैं । इस अवस्था में आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं और आलिंदों से रुधिर निलयों में जाता है। दायाँ आलिंद सदैव बाँयें आलिंद से कुछ पहले संकुचित होता है।

(iii) निलय संकुचन – निलयों के संकुचन को निलय संकुचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप आलिंद-निलय कपाट बंद हो जाते हैं एवं महाधमनियों के अर्द्धचंद्राकार कपाट खुल जाते हैं और रुधिर महाधमनियों में चला जाता है।

(iv) निलय शिथिलन – संकुचन के पश्चात् निलयों में शिथिलन होता है और अर्द्धचंद्राकार कपाट बंद हो जाते हैं। निलयों के भीतर रुधिर दाब कम हो जाता है जिससे आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं।


39. मनुष्यों में पाचन की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।

उत्तर ⇒ मनुष्यों में पाचन क्रिया मनुष्य की पाचन क्रिया निम्नलिखित चरणों में विभिन्न अंगों में पूर्ण होती है

(i) मुखगुहा में पाचन – मनुष्य मुख के द्वारा भोजन ग्रहण करता है । मुख में स्थित दाँत भोजन के कणों को चबाते हैं जिससे भोज्य पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाता है। लार-ग्रंथियों से निकली लार भोजन में अच्छी तरह से मिल जाती है। लार में उपस्थित एंजाइम भोज्य पदार्थ में उपस्थित मंड (स्टार्च) को शर्करा (ग्लूकोज) में बदल देता है। लार भोजन को लसदार चिकना और लुग्दीदार बना देती है, जिससे भोजन ग्रसिका में से होकर आसानी से आमाशय में पहुंच जाता है ।

(ii) आमाशय में पाचन क्रिया – जब भोजन आमाशय में पहुँचता है तो वहाँ भोजन का मंथन होता है जिससे भोजन और छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। भोजन में नमक का अम्ल मिलता है जो माध्यम को अम्लीय बनाता है तथा भोजन को सडने से रोकता है। आमाशयी पाचक रस में उपस्थित एंजाइम प्रोटीन को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं।

आमाशय में पाचन क्रिया - जब भोजन आमाशय में पहुँचता है

(iii) ग्रहणी में पाचन – आमाशय में पाचन के बाद जब भोजन ग्रहणी में पहुँचता है तो यकृत में आया पित्त रस भोजन से अभिक्रिया करके वसा का पायसीकरण कर देता है तथा माध्यम को क्षारीय बनाता है जिससे अग्नाशय से आये पाचक रस में उपस्थित एंजाइम क्रियाशील हो जाते हैं और भोजन में उपस्थित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का पाचन कर देते हैं।

(iv) क्षुद्रात्र में पाचन – ग्रहणी में पाचन के बाद जब भोजन क्षुद्रांत्र में पहुँचता है तो वहाँ आंत्र रस में उपस्थित एंजाइम बचे हुए अपचित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का पाचन कर देते हैं। आस्त्र की विलाई द्वारा पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लिया जाता है तथा अवशोषित भोजन रक्त में पहुंचा दिया जाता है।

(v) बड़ी आंत्र (मलाशय) में पाचन – क्षुद्रांत्र में भोजन के पाचन एवं अवशोषण के बाद जब भोजन बडी आंत्र में पहुँचता है तो वहाँ पर अतिरिक्त जल का अवशोषण कर लिया जाता है. बडी आंत्र में भोजन का पाचन नहीं होता। भोजन का अपाशष्ट (अतिरिक्त) भाग यहाँ पर एकत्रित होता रहता है तथा समय-समय पर मल द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।


40. स्टोमेटा के खुलने और बंद होने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ रुधिरों का खुलना एवं बंद होना रक्षक कोशिकाओं की सक्रियता पर निर्भर करता है। इसकी कोशिका भित्ति असमान मोटाई की होती है। जब यह कोशिका स्फीति दशा में होती है तो छिद्र खलता है व इसके ढीली हो जाने पर यह बंद हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि द्वार कोशिकाएं आस-पास की कोशिकाओं से पानी को अवशोषित कर स्फीति की जाती है। इस अवस्था में कोशिकाओं में पतली भित्तियां फैलती हैं, जिसके कारण छिद्र के पास मोटी भित्ति बाहर का और खिंचती है, फलतः रंध्र खल जाता है। जब इसमें पानी की कमी हो जाती है तो तनाव मुक्त पतली भित्ति पनः अपनी पुरानी अवस्था में आ जाता है, फलस्वरूप छिद्र बंद हो जाता है।
प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरता जाता है और शर्करा का स्तर रक्षक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में बढ़ता जाता है। फलस्वरूप परासरण दाब और स्फीति दाब में परिवर्तन हो जाता है । इससे रक्षक कोशिकाओं में एक कसाव आता है जिससे बाहर की भित्ति बाहर की ओर खिंचती है। इससे अंदर की भित्ति भी खिंच जाती है। इस प्रकार स्टोमेटा चौड़ा हो जाता है अर्थात् खुल जाता है।
अंधकार में शर्करा स्टार्च में बदल जाती है जो अविलेय होती है। रक्षक कोशिकाओं को कोशिका द्रव्य में शर्करा का स्तर गिर जाता है। इससे रक्षक कोशिकाएँ ढीली पड़ जाती हैं। इससे स्टोमेटा बंद हो जाता है।

है। इससे रक्षक कोशिकाएँ ढीली पड़ जाती हैं। इससे स्टोमेटा बंद हो जाता है।


41. मानव श्वसन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒– मानव के श्वसन तंत्र का कार्य शुद्ध वायु को शरीर के भीतर भोजन तथा अशुद्ध वायु को बाहर निकलना हैं।

इसके प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं –

(i) नासाद्वार एवं नासागहा – नासाद्वार से वायु शरीर के भीतर प्रवेश करती है । नाक में छोटे-छोटे और बारीक बाल होते हैं जिनसे वायु छन जाती है। उसकी धूल उनसे स्पर्श कर वहीं रुक जाती है इस मार्ग में श्लेष्मा की परत इस कार्य में सहायता करती है। वायु नम हो जाती है। ..

(ii) ग्रसनी – ग्रसनी ग्लॉटिस नामक छिद्र से श्वासनली में खुलती है। जब हम भोजन करते हैं तो ग्लॉटिस त्वचा के एक उपास्थियुक्त कपाट एपिग्लाटिस से ढंका रहता है।

(iii) श्वास नली – उपास्थित से बनी हुई श्वासनली गर्दन से नीचे आकर श्वसनी बनाती है। यह वलयों से बनी होती है तो सुनिश्चित करते हैं कि वायु मार्ग में रुकावट उत्पन्न न हो।

(iv) फुफ्फुस – फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते हैं जो गुब्बारे जैसी रचना में बदल जाता है। इसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं । की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है।

(v) कार्य – जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊर उठती हैं और १. हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वायु फुफ्फुस के भीतर चूस ली जाती है । वह विस्तृत कूपिकाओं को ढक लेती है । रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका

रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है । श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती । है, फफ्फस सदैव वायु का विशेष आयतन रखते हैं जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण । तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।


42. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?

अथवा, पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है ?

उत्तर ⇒ पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और खनिज लवणा को अपने निकट विद्यमान मिट्टी से प्राप्त करते हैं

(i) जल – हर प्राणी के लिए जल जीवन का आधार है। पौधों में जल जाइलम ऊतकों के द्वारा अन्य भागों में जाता है। जड़ों में धागे जैसी बारीक रचनाओं की बहुत बड़ी संख्या होती है। इन्हें मलरोम कहते हैं। ये मिटटी में उपस्थित पानी से साध संबंधित होते हैं । मलरोग में जीव द्रव्य की सांद्रता मिटटी में जल के घोल की अपक्षा आधक होती है । परासरण के कारण पानी मलरोमों में चला जाता है पर इसस मूलराम के जीव द्रव्य की सांद्रता में कमी आ जाती है और वह अगली कोशिका म चला जाता है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है जिस कारण पानी जाइलम वाहिकाओं में पहुँच जाता है। कुछ पौधों में पानी 10 सेमी. से 10) सेमी प्रति मिनट की गति से ऊपर चढ़ जाता है ।

पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और(ii) खनिज – पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप में करनी होती है। नाइट्रेट, फॉस्फेट आदि पानी में घुल जाते हैं और जड़ों के माध्यम से पौधों में प्रविष्ट हो जाते हैं। वे पानी के माध्यम से सीधा जड़ों से संपर्क में रहते हैं। पानी । और खनिज मिलकर जाइलम ऊतक में पहुँच जाते हैं और वहाँ से शेष भागों में चले जाते हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण जाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुंचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थूल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं । वाहिनिकाएँ लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएँ हैं जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दुसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुंचाए जाते हैं। यही जड़ें जाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुँचाते हैं।

खनिज-पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप


43. रक्त क्या है? इसके संघटन का वर्णन कार्य के साथ करें।

उत्तर ⇒ रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है जो उच्च बहकोशिकीय जन्तओं में एक तरल परिवहन माध्यम है, जिसके द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थानों में पदार्थों का परिवहन होता है।

मानव रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं –

(a) द्रव घटक, जिस प्लाज्मा कहते हैं एवं
(b) प्लाज्मा : यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है, जो आयतन के हिसाब सेपो रक्त का 55 प्रतिशत होता है। इसमें करीब 90% जल, 7% प्रोटीन,0.09% अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ विद्यमान होते हैं।
इनमें उपस्थित प्रोटीन को प्लाज्मा प्रोटीन कहते हैं, जिनमें प्रमुख हैं-फाइब्रिनोजन, प्रोओबिन तथा हिपैरिन। फाइब्रिनोजनरहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।

(b) रक्त कोशिकाएँ : आयतन के हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त का 45 प्रतिशत भाग हैं।

ये तीन प्रकार की होती हैं

(i) लाल रक्त कोशिका
(ii) श्वेत रक्त कोशिका तथा
(iii) रक्त पटिटकाण ।

(i) लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell/RBC) : इन्हें एरीथ्रोसाइट्स (erythrocytes) भी कहते हैं, जो उभयनतोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं। इनमें केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का अभाव होता है। इनमें एक प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है, जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है। इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं। मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है, और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। मानव के प्रति मिलीलीटर रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है।

(ii) श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell/WBC) : ये अनियमित आकार की न्यूक्लियसयुक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं पाये जाते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती हैं। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (leucocytes) भी कहते हैं। मानव के प्रति मिलीलीटर में इनकी संख्या 5000-6000 होती है। संक्रमण की स्थिति में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।

ये दो प्रकार की होती है –

(a) ग्रैनुलोसाइट्स एवं  (b) एग्रैनुलोसाइट्स।

(a) ग्रैनुलोसाइट्स अपने अभिरंजन गुण के कारण तीन प्रकार की होती हैं –

(i) इयोसिनोफिल (ii) बसोफिल एवं (iii) न्यूट्रोफिल।

इनकी कोशिकाद्रव्य कणिकामय होती है। इयोसिनोफिल एवं न्यूट्रोफिल्स
फैगोसाइटोसिस द्वारा हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करते हैं।

(b) एग्रैनुलोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं –

(i) मोनोसाइट्स एवं (ii) लिम्फोसाइट्स।

इनमें उपस्थित केन्द्रक में अनेक धुंडियाँ पाई जाती हैं। इनमें मोनोसाइट्स का कार्य भक्षण करना एवं लिम्फोसाइट्स का काम एंटिबॉडी का निर्माण करना होता है।

(iii) रक्त पट्टिकाणु (Blood Platlets) : ये बिम्बाणु या ओम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। ये रक्त का थक्का बनने (blood clotting) में सहायक होते हैं।

रक्त के कार्य – रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है।

वैसे रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं –

(a) पदार्थों का परिवहन, (b) संक्रमण से शरीर की सुरक्षा एवं (c) शरीर के तापमान का नियंत्रण करना।

रक्त के निम्नलिखित अन्य कार्य हैं –

(a) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।

(b) यह शरीर की कोशिकाओं से CO,को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।


44. अग्न्याशय द्वारा स्त्रावित सभी पाचक रस की चर्चा करें।

उत्तर⇒ अग्न्याशय द्वारा निम्नलिखित पाचक एंजाइम स्रावित होते है— ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमाइलेज, लाइपेज तथा न्यूक्लियेज। ये सभी भोजन के पाचन में अहम भूमिका निभाते हैं

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क्लास 10th विज्ञान का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न यहां पर दिया गया है। जो बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2022 के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तो अगर आप क्लास 10th के छात्र हैं। तो ऊपर दिए गए सभी प्रश्न को जरूर पढ़ें यह सब प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा में पूछे जा सकते हैं। class 10th science question answer


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